राखों की परी (Angel of the Ashes): सौरव कामत, फरीदाबाद, दिल्ली का एक 23 वर्षीय टेक्नोलॉजी स्टूडेंट, आम युवाओं जैसा ही था — इंस्टाग्राम का दीवाना, प्यार का सपना देखने वाला, और रात-भर रील्स में खोया रहने वाला।
एक रात, जब बारिश खिड़कियों पर थपथपा रही थी और कमरा एकदम शांत था — इंस्टाग्राम पर एक नोटिफिकेशन आया:
@angel.seraph ने आपको फॉलो किया।
उत्सुक होकर उसने प्रोफ़ाइल खोली।
वो वहीं थी।
ना कोई फ़िल्टर, ना हैवी एडिट। बस एक लड़की — दिल चुराने वाली खूबसूरती। बड़ी भूरे रंग की आंखें, लंबे खुले भूरे बाल, और ऐसा मुस्कान जो रूह तक उतर जाए। तस्वीरें रहस्यमयी — अक्सर हल्के अंधेरे में, लाल साड़ी में, और कैप्शन…
“प्यार मार सकता है। और ख़ामोशी भी।”
सौरव ने तुरंत फॉलो बैक किया। कुछ सेकंड में ही मैसेज आया:
“हाय 🙂 तुम्हारा प्रोफ़ाइल बहुत अच्छा लगा।”
यही बातचीत की शुरुआत थी।
दिन मिनटों जैसे बीते। चैट्स प्यारी थीं, कभी-कभी गहराई लिए हुए। उसने कभी वीडियो कॉल या वॉइस मैसेज नहीं किया — कहती थी उसका माइक काम नहीं करता।
पर सौरव को फर्क नहीं पड़ा। वो दिल से लग चुका था।
दो हफ्ते बाद, उसने अपने जज़्बात जाहिर कर दिए।
और फिर आया वो जवाब जिसने उसकी धड़कनों को तेज़ कर दिया:
“कल मिलते हैं।”
पर लड़की ने रेस्टोरेंट या कैफे से इनकार किया। कहा उसे भीड़ पसंद नहीं।
“लॉन्ग ड्राइव चलेंगे,” उसने कहा।
सौरव ने सब प्लान किया — उसके पसंदीदा स्नैक्स, फूल, गाड़ी साफ़ की, और सबसे अच्छी परफ्यूम लगाई। बारिश लगातार हो रही थी, लेकिन उसे ये रोमांटिक लग रहा था।
शाम 7 बजे, वह बायोडायवर्सिटी पार्क, गुरुग्राम पहुँचा।
और वो वहाँ खड़ी थी।
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लाल गीली साड़ी में, लंबे भीगे बाल चेहरे से चिपके हुए। उसके पास छाता नहीं था। न ही उसने ज़रूरत समझी। वो चुपचाप कार की ओर बढ़ी।
सौरव की सांस थम गई।
वो तस्वीरों से कहीं ज़्यादा खूबसूरत थी।
“हाय, एंजेल!” — उसने कार का दरवाज़ा खोला।
वो बस हल्के से मुस्कुराई और पास बैठ गई। चुपचाप अपने हाथों से पानी झाड़ रही थी।
“कहाँ चलना है?” उसने पूछा।
“गुड़गांव से फरीदाबाद वाला रास्ता लो,” उसने बगैर देखे कहा। “भीड़ कम होगी।”
वो मान गया। रास्ते भर वो बाहर देखती रही।
बारिश और तेज़ हो चुकी थी। स्ट्रीट लाइट्स झपकती और ग़ायब होती जा रही थीं।
“कुछ खाओगी?” — सौरव ने स्नैक्स दिखाए।
उसने सिर हिला दिया — “ना।”
“तुम्हारी फेवरेट मूवी कौन सी है?” — कोई जवाब नहीं।
“म्यूजिक?” — फिर भी चुप।
फिर उसे कुछ अजीब लगा — कार का तापमान गिर रहा था। खिड़कियों पर ठंडी धुंध जमने लगी थी। उसकी सांसें सफेद भाप जैसी दिख रही थीं।
“एंजेल…? तुम ठीक हो?” — कोई जवाब नहीं।
तभी उसने ब्रेक मारा।
कार नहीं रुकी।
ब्रेक और जोर से दबाया — कार तेज़ हो गई।
“ये क्या बकवास है?!”
स्टीयरिंग पर पकड़ बनाई, लेकिन वो अपने-आप घूम रहा था। फोन उठाया — बंद। खिड़कियाँ — लॉक। कुछ भी काम नहीं कर रहा था।
“क्या हो रहा है यार?!”
तभी, उसने देखा — वो धीरे-धीरे उसकी ओर मुड़ी।
उसकी आवाज़ अब वो मीठी नहीं थी, जो पहले हुआ करती थी।
सूखी… खोखली… मृत।
“मैंने कहा था ना… मुझे भीड़ पसंद नहीं…”
आसपास बिजली कड़कती है — और सौरव उसकी असली शक्ल देखता है।
वो इंसानी चेहरा नहीं था।
जला हुआ। पिघला हुआ। विकृत।
एक आंख बाकी थी, दूसरी — काली, खोखली गुफा जैसी। होंठ जल चुके थे — अंदर से नुकीले दांत झाँक रहे थे।
सौरव चीख पड़ा।
सीटबेल्ट खोलने की कोशिश की — जाम हो चुकी थी।
कार अब पेड़ों के बीच, फरीदाबाद के जंगलों में मुड़ गई।
बारिश थम गई।
अब केवल मौन था।
कार एक वीरान जगह पर रुक गई। ना कोई लाइट, ना कोई आवाज़। सिर्फ़ सड़ांध और जलने की बदबू।
वो पास झुकी।
“मैं भी कभी तुम्हारी जैसी थी… एक लड़का… ऑनलाइन मिला था। उसने कहा था वो मुझसे प्यार करता है… फिर यहाँ लाया… और पेट्रोल डालकर आग लगा दी…”
उसकी आंखों से आँसू बहे — स्याही जैसे काले।
“मैं जिंदा थी… मैं प्यार में थी… अब मैं बस…”
उसने अपना चेहरा घुमाया। चमड़ी उखड़ गई।
“… राखों की परी हूं।”
सौरव ने खिड़की तोड़ने की कोशिश की — पर सब व्यर्थ।
“हर साल,” वो फुसफुसाई, “मैं एक को ढूंढती हूं… बिल्कुल उसी जैसे… और उसे यहाँ लाती हूं… ताकि वो भी वही महसूस करे जो मैंने किया…”
वो मुस्कुराई — रक्त में सने हुए दांतों के साथ।
“और फिर… मैं उन्हें जला देती हूं।”
कार में आग लग गई। सौरव की चीखें — बारिश में दबकर — जंगल में समा गईं।
तीन दिन बाद, पुलिस को कार मिली — फरीदाबाद के जंगलों में।
पूरी तरह जली हुई। पर आसपास की सूखी घास और पेड़ — एकदम सही सलामत।
कार के अंदर — एक जला हुआ कंकाल। ड्राइविंग सीट पर।
लड़की का कोई निशान नहीं।
बस एक चीज़ — पीछे की सीट पर एक लाल साड़ी, करीने से तह की हुई।
और सौरव का फोन — अब फिर से चालू — इंस्टाग्राम खुला हुआ।
आख़िरी मैसेज:
@angel.seraph
“तुम ही हो… जिसका मुझे इंतज़ार था… जल्दी मिलना?”
कहानी की सीख (Moral):
हर सुंदर चेहरा सच्चा नहीं होता। हर प्रोफ़ाइल के पीछे इंसान हो ये ज़रूरी नहीं।
सोशल मीडिया की दुनिया चमकदार ज़रूर है, लेकिन नकली भी हो सकती है। तस्वीरें धोखा देती हैं, शब्द झूठ हो सकते हैं। और कभी-कभी…
स्क्रीन के पीछे कोई रूह होती है, इंसान नहीं।
इसलिए सतर्क रहें। किसी से पहली बार मिलें तो सार्वजनिक और सुरक्षित जगह पर मिलें। अपने करीबियों को बताकर जाएं। और अगर मन में थोड़ी सी भी आशंका हो —
तो सुनें। शायद वही आपकी जान बचा सके।
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