ईडन अस्पताल: जहाँ मुर्दे भी ऑपरेशन करवाते हैं!

बारिश वाली एक ठंडी शाम थी। बिजली बार-बार चमक रही थी और गरज से खिड़कियाँ काँप रही थीं। कोलकाता की भीड़-भाड़ वाली सड़कों से दूर, ईडन अस्पताल का पुराना पत्थर-सा दरवाज़ा धीमे चरमराता हुआ खुला। 

अंदर गरमी नहीं, एक अजीब-सी सीलन और दवाई की गंध भरी थी, जिसमें किसी सड़े हुए कपड़े जैसी हल्की-सी बू मिली हुई थी। दीवारों पर लटकी बहुत पुरानी तस्वीरों के चेहरे बिजली की चमक पर ऐसे लगते थे मानो पलक झपकाते ही देखने लगें।

डॉक्टर रिया ने उसी दिन अस्पताल में रात की पहली नौकरी शुरू की। जब उन्होंने अपना रेनकोट उतारा, तो उनका स्टेथोस्कोप (डॉक्टरों का आला) बहुत ठंडा लग रहा था। रिसेप्शन पर एक बूढ़ी नर्स बैठी थीं। उन्होंने कांपते हुए हाथों से रिया को लॉकर की चाबी दी और धीरे से कहा,—

“रात को लिफ्ट का सबसे नीचे वाला बटन मत दबाना… वो जगह बंद है।”

नर्स की आवाज़ में डर था, लेकिन रिया ने मुस्कुराकर सिर हिलाया और आगे बढ़ गईं।

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कार्डियो वार्ड का लंबा रास्ता खाली था और पीली रोशनी से भरा था। थोड़ी-थोड़ी देर में ट्यूबलाइट झपकती और छत से पानी टपकता रहता। फर्श पर पुरानी व्हीलचेयर के निशान थे, जैसे किसी ने उन्हें जल्दी से खींचा हो। चलते-चलते रिया को लगा कि कोई पीछे रो रहा है—

“हुं… हुं…” की सिसकी आ रही थी। 

उसने पीछे मुड़कर देखा, तो सिर्फ हवा थी, लेकिन फर्श पर गीले पंजों के निशान चमक रहे थे, जो मुर्दाघर की तरफ जा रहे थे। रिया ने गहरी सांस ली, अपनी कॉपी में लिखा और ड्यूटी रूम में पहुँच गई।

रात के ग्यारह बजे, इमरजेंसी वाला फोन टन-टन करके बजा और फिर अचानक चुप हो गया। स्क्रीन पर एक नया मरीज का नाम आया:

नाम: रुक्मिणी
उम्र: 25 साल
बीमारी: अजीब बुखार
खास बात: “ऑपरेशन मत करना, ये पहले ही मर चुकी है।”

रिया ने फाइल उठाई और डर गई। उस पर डॉक्टर कुणाल के साइन थे – वही बड़े डॉक्टर, जिनकी सब लोग तारीफ करते थे। वह सीधे ICU में चली गई।

ICU में रोशनी और भी कम थी। मशीन पर हर धड़कन धीमी—

“बीप… बीप…” की तरह बज रही थी और ठंडी हवा चल रही थी। 

बिस्तर पर रुक्मिणी लेटी हुई थी – उसका चेहरा पीला था और आँखों के नीचे काले घेरे थे। लेकिन सबसे डरावनी चीज़ थी उसके पैर के पास बंधी पर्ची: उस पर लिखा था “DECEASED” (मतलब मर चुकी है)। रिया ने जल्दी से उसकी नब्ज़ देखी – वह चल रही थी!

तभी मशीन की लाइन सीधी हो गई – एक लंबी “पीऽऽऽ” की आवाज़ आई। रिया झुककर देखने लगी, तो अचानक मशीन पर धड़कन फिर से दिखने लगी। रुक्मिणी की पलकें भी हिलने लगीं। रिया डरकर पीछे हट गई। तभी किसी ने पीछे से धीरे से कहा,—

“ऑपरेट करो…” – आवाज़ बहुत धीमी थी, जैसे कान में ही कोई बोल रहा हो। वह मुड़ी, लेकिन वहाँ कोई नहीं था।

रिया जल्दी से डॉक्टर कुणाल के ऑफिस पहुँची। दरवाज़ा थोड़ा खुला था, लेकिन अंदर से धीरे-धीरे हंसने की आवाज़ आ रही थी, जैसे दो लोग बातें कर रहे हों। रिया ने झाँककर देखा – कुर्सी पर सिर्फ डॉक्टर कुणाल थे, लेकिन उनका चेहरा अजीब लग रहा था: पीली रोशनी में उनकी आँखें बहुत काली दिख रही थीं। टेबल पर एक मोटी लाल रंग की डायरी खुली थी, जिसके पन्ने बिना हवा के अपने आप पलट रहे थे।

“डॉक्टर रिया, पहली रात को ही इतनी रिपोर्टें?” कुणाल ने बिना मुस्कुराए कहा।

“सर, मरीज जीवित है, पर फाइल में ‘मृत’ क्यों है?”

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कुणाल हल्की-सी हँसी हँसे,— “रिकॉर्ड रूम की गलती होगी। आप वार्ड 13 देखी हैं? वहाँ किसी को मत भेजना।” उनकी आवाज़ में चेतावनी थी, मानो वहाँ कोई वर्जित रहस्य हों।

रिया वापस जाने लगी, तो रास्ते में लिफ्ट अपने आप खुल गई। अंदर बहुत ठंडी हवा थी। लिफ्ट में नंबर 0 (बेसमेंट) चमक रहा था – वही जगह, जहाँ जाने से नर्स ने मना किया था। लिफ्ट की लाइटें हिल रही थीं और अंदर से धीरे-धीरे लोरी जैसी आवाज़ आ रही थी। 

रिया डर गई, फिर भी उसने झुककर देखा – फर्श पर डॉक्टर का कोट पड़ा था, जिस पर ताज़ा खून लगा हुआ था। उसने जल्दी से दरवाज़ा बंद कर दिया, और लोरी की आवाज़ भी तुरंत बंद हो गई। रिया ने खुद को संभाला और फिर ICU में पहुँची। 

इस बार बिस्तर खाली था! चादर नीचे गिरी थी, जैसे किसी ने खींचकर फेंक दी हो। कमरे के कोने में पर्दा हिल रहा था। रिया ने टॉर्च से देखा – पर्दे के पीछे रुक्मिणी खड़ी थी, लेकिन उसका चेहरा बदला हुआ था – पीला, आँखें लाल और होंठों पर उदास मुस्कान थी। फिर वह गायब हो गई! पर्दा फिर से शांत हो गया।

रिया पीछे भागी और गलियारे में गिर गई। तब उसे जमीन पर कुछ लिखा दिखा – गरम खून से: “WARD 13”। लिखावट ताज़ी थी, पर कोई नहीं दिख रहा था।

रिया डर गई और उसने सोचा कि सच पता किए बिना नहीं रुकेगी। उसने नर्स अंजलि को साथ लिया। दोनों पुरानी सीढ़ी से वार्ड 13 की तरफ़ गईं। रास्ते में दीवार पर जले हुए पोस्टर मिले – बहुत पुराने ऑपरेशन के नोटिस; सब मरीजों की एक ही तारीख़, एक ही उम्र, और सबकी मौत का कारण: पता नहीं।

वार्ड 13 का दरवाज़ा पुराना था। जैसे ही हाथ लगाया, वो खुल गया। अंदर धूल से भरी टेबलें थीं, जिन पर पुराने औज़ार रखे थे। एक टूटा हुआ स्ट्रेचर भी था और एक बड़ा फ्रीजर भी। फ्रीजर के शीशे पर हाथ के निशान थे, जैसे किसी ने अंदर से मदद के लिए मारा हो। तभी पीछे से किसी के चलने की आवाज़ आई। 

रिया ने देखा – डॉक्टर कुणाल खड़े थे, और उनके साथ तीन और डॉक्टर भी थे, जिनके चेहरे पर अजीब मास्क लगे थे।

“रिया, तुम्हें तो खुद ही आना था,” कुणाल ने धीरे से कहा।

मास्क पहने डॉक्टरों ने धीमी रोशनी में गोल घेरा बनाया। औज़ार चमक रहे थे। दूर दीवार पर लगी घड़ी रुक गई – टिक-टिक बंद। कमरे में सिर्फ रिया की साँसों की आवाज़ आ रही थी।cलेकिन तभी ऊपर से ठंडी हवा आई और सब मेज़-कुर्सी हिलने लगीं। 

फ्रीजर अपने आप खुल गया, और उसमें से एक धुंधली सी चीज़ निकली – रुक्मिणी! उसकी आँखें खाली थीं, पर उसने इशारा किया: “भागो!” कमरा एकदम ठंडा हो गया; मुँह से भाप निकलने लगी। औज़ार ज़ोर से हिलने लगे, लाइटें बंद हो गईं, और एक तेज़ चीख सुनाई दी। 

मास्क पहने डॉक्टर डर के मारे दरवाज़े की तरफ भागे, पर दरवाज़ा बंद था, जैसे किसी ने बाहर से बंद कर दिया हो। रिया ने अंधेरे में टॉर्च घुमाई – कुणाल दीवार से लगे डर से काँप रहे थे। अचानक छत से पानी की तेज़ धार गिरी, जिसकी गंध ऐसी थी जैसे खून में कुछ मिला हो। कुणाल की आँखों में डर था; उन्होंने धीरे से कहा,—

“यह मेरे बस में नहीं… किसी ने उसे जगा दिया।”

उसी समय अलार्म बजने लगा; पुलिस और टेक्नीशियन की लाइटें बाहर दिखाई दीं। जैसे ही दरवाज़ा टूटा, ठंडी हवा गायब हो गई, कमरा रोशन हो गया – पर मास्क पहने डॉक्टरों के कोट वहीं थे, लोग गायब! बस फर्श पर पानी में मिला लाल रंग था और एक पुरानी फोटो मिली – कुणाल और उनके दोस्तों के साथ रुक्मिणी ऑपरेशन थिएटर में, फोटो पिछले साल की थी।

अगली सुबह अख़बार में बड़ा मज़ाक लगता हेडलाइन छपा: 

“ईडन अस्पताल के वार्ड 13 में रहस्यमयी घटना, जांच जारी।” 

कुणाल को काम से निकाल दिया गया, और वार्ड 13 को बंद कर दिया गया। रिया ने छुट्टी ली, लेकिन जाते समय उसने गलियारे में फिर से वही धीमी लोरी सुनी, और हवा में किसी ने कान में धीरे से कहा,—

 “कहानी अभी खत्म नहीं हुई है…”

रिया ने मुड़कर देखा – लॉबी बिल्कुल खाली थी, पर फर्श पर पानी के निशान चमक रहे थे, जो सीधे वार्ड 13 की तरफ जा रहे थे। उसके बाद से रिया ने नौकरी छोड़ दी और फिर कभी उस हॉस्पिटल की तरफ नहीं देखा।

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