माँ को लगा बेटी नींद में चल रही है… लेकिन फिर दीवारों से खून टपकने लगा – लखनऊ का सबसे डरावना सच!

साल 1998, लखनऊ के एक शांत इलाके में मीरा वर्मा नाम की एक विधवा माँ अपने चार बच्चों — आरती, नेहा, रोहित और छोटे अमन — के साथ एक पुराने टूटे-फूटे घर में रहती थी। उनका जीवन मुश्किल था, पर चलता जा रहा था। लेकिन एक बारिश भरी रात सब कुछ बदल गया।

सबसे पहले एक हल्की सी आवाज़ आई।

ठक… ठक… ठक…

मीरा को लगा, शायद हवा है। फिर आवाज़ आई — कुछ खींचने की, जैसे फर्श पर कुछ रगड़ रहा हो।

खर्ररर… खर्ररर…

मीरा धीरे से बोली, “आरती? नेहा? तुम लोग जाग रहे हो क्या?”

तभी अंधेरे से आवाज़ आई। पर वो आरती की नहीं थी। बहुत भारी, डरावनी आवाज़ थी: “यह मेरा घर है…”

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मीरा चौंक गई। आरती रसोई के पास खड़ी थी, आँखें फैली हुई थीं, और वह कुछ नहीं देख रही थी… बस सामने देख रही थी।

अगले दिन आरती का व्यवहार और अजीब हो गया। वह दीवारों पर लाल चॉक से कुछ अजीब निशान बनाने लगी। उसकी आवाज़ अब और भी गहरी और डरावनी हो गई थी। एक रात, लाइट बार-बार बंद होने लगी और आरती अचानक बिस्तर पर सीधी बैठ गई और बोली: “मैं शंभूनाथ हूँ… यहीं मरा था… अब भी यहीं हूँ…”

अब चीज़ें हवा में उड़ने लगीं। बर्तन टूटने लगे। आरती कभी-कभी हवा में तैरने लगी। नेहा ने एक बार ज़ोर से चिल्लाया और मीरा भागी तो देखा — आरती बिस्तर के ऊपर हवा में थी, और आँखें उलटी हो गई थीं।

पड़ोसी दौड़ कर आए। एक अंकल बोले,

“इस घर में कुछ है! यह बच्ची अब बस बच्ची नहीं रही।”

पुलिस आई, पर वो भी डर गई। एक सिपाही ने धीरे से मीरा से कहा:

“मैडम… इसने मुझे मेरी माँ का नाम बताया… और वो भी सही… ये कैसे हो सकता है?”

अब यह बात मंदिर और चर्च तक पहुँच गई। और बहुत दूर केरल में, अर्जुन और वैदेही अय्यर को इस केस के बारे में बताया गया।

वैदेही को कुछ दिनों से डरावने सपने आ रहे थे — एक औरत काली साड़ी में, चेहरा बालों से ढँका, हाथ में टूटी माला, और अर्जुन को त्रिशूल से घायल होते हुए देखती।

वो सपने में चिल्लाई:

“नहीं! अर्जुन!”

जब उन्हें लखनऊ बुलाया गया, वो तुरंत आ गए।

वहाँ जाकर उन्होंने मीरा और उसके बच्चों से मुलाकात की। आरती बहुत शांत बैठी थी, पर रात में अचानक बदल जाती।

उन्होंने कैमरे लगाए। एक रात आरती कैमरे की ओर मुड़ी और बोली: “मैं तो बस रास्ता हूँ… असली ताकत पीछे छिपी है…”

एक वीडियो में दिखा कि आरती चम्मच मोड़ रही थी और कुर्सी गिरा रही थी। अगली सुबह अखबारों में लिखा गया:

“लड़की का नाटक — सब झूठ था!”

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लेकिन वैदेही को यकीन नहीं हुआ।

उन्होंने पूजा में ध्यान लगाया, अगरबत्ती जलाई और मंत्र बोले। उन्हें सपना आया — एक डरावनी औरत लाल आग में नाच रही थी और कह रही थी: “मैं काली-मोक्षी हूँ… मुझे शरीर चाहिए… मुझे बलि चाहिए…”

अब सच्चाई सामने थी। शंभूनाथ बुरा नहीं था। असली राक्षसी थी — काली-मोक्षी।

उसी रात ज़ोरदार तूफान आया। बिजली चमकी। दीवारों से खून बहने लगा। और आरती छत पर चढ़ गई, आँखें खाली और आवाज़ डरावनी: “आज काम पूरा होगा…”

अर्जुन दौड़ पड़े, तूफान में। काँच टूट रहा था, लकड़ी उड़ रही थी। उन्होंने खुद को बचाते हुए छत तक पहुँचा। आरती छत के किनारे खड़ी थी, कूदने को तैयार।

आरती की आवाज़ अब दो थी — उसकी नहीं थी, और एक डरावनी सी गूँज: “मोक्ष चाहिए तो बलि दो…”

वैदेही भागी, हाथ में जापमाला थी। अचानक उसे याद आया — सपना जिसमें पत्तों पर एक नाम लिखा था।

वह छत पर पहुँची और ज़ोर से चिल्लाई: “काली-मोक्षी! तेरा नाम मुझे याद है!”

तभी सब कुछ काला हो गया। ज़ोर की चीख सुनाई दी — बहुत डरावनी। फिर सब शांत हो गया। आरती गिर गई — अब वो ठीक थी।

मीरा ने उसे गले से लगा लिया, आँखों में आँसू थे। सब कुछ शांत हो गया।

जाते समय अर्जुन ने अटारी में पड़ी एक पुरानी लकड़ी की कठपुतली उठाई। उसकी आँखें बहुत अजीब थीं — जैसे देख रही हो।

अर्जुन बोले,

“सब खत्म हो गया।”

पर वैदेही ने आसमान की ओर देखा और धीरे से कहा:

“अभी के लिए…”

क्योंकि ऐसे घरों में बुराई मरती नहीं… वो बस सो जाती है।

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