हिमालय की ट्रैकिंग, नरक का रास्ता: 5 दोस्तों की खौफनाक दास्तान!

यह कोई ट्रैकिंग नहीं, नरक यात्रा थी! दिल्ली के पाँच पुराने दोस्त — कबीर, रोहन, विक्रम, अर्जुन, और इमरान की कहानी। यह सब बचपन के दोस्त थे, लेकिन उनकी दोस्ती उतनी ही ताज़ा थी जितनी बचपन में थी। रोहन ने एक ऐसी जगह हिमालय में ट्रैकिंग का सुझाव दिया जहाँ आज तक कोई नहीं गया था।

सब मान गए।

मगर एक रात, मुंबई में कबीर और रोहन एक दुकान से कुछ सामान ले रहे थे जब लुटेरों ने हमला कर दिया। कबीर डर के मारे एक अलमारी के पीछे छिप गया और उसकी आँखों के सामने रोहन को चाकू से मार दिया गया। कबीर कुछ नहीं कर पाया। यह हादसा उसके दिल में गहरा ज़ख्म बन गया।

छह महीने बाद, रोहन की याद में सारे दोस्त उत्तराखंड की ओर ट्रैकिंग पर निकल पड़े। ऊँचे पहाड़, ठंडी हवा और घना जंगल – सब कुछ मनमोहक लग रहा था।

पहला दिन: जब वे पहाड़ों पर चल रहे थे, तो उन्हें बहुत अच्छा लगा, जैसे सब कुछ शांत हो गया हो। सूरज की रोशनी पेड़ों के पत्तों से छनकर नीचे आ रही थी और पंछी बहुत मीठे-मीठे गाने गा रहे थे।

उनमें से एक दोस्त का नाम अर्जुन था। वह हमेशा बहुत खुश रहता था और खूब हँसता था। वह आगे-आगे चल रहा था, लेकिन तभी उसका पैर फिसल गया और वह नीचे गिर गया। उसे थोड़ी चोट लग गई थी इसलिए उसे चलने में मुश्किल हो रही थी।

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उन्होंने सोचा कि अगर वे एक छोटे रास्ते से जाएँगे तो जल्दी पहुँच जाएँगे। यह रास्ता एक घने जंगल से होकर जा रहा था, जहाँ कोई साफ पगडंडी (चलने का रास्ता) भी नहीं थी।

जैसे ही वे जंगल में अंदर गए, उन्हें पेड़ों पर कुछ अजीब निशान दिखे। कुछ निशान ऐसे थे जैसे किसी जानवर के पैर के हों और कुछ ऐसे थे जैसे किसी अलग भाषा के अक्षर हों, जिन्हें कोई समझ नहीं पा रहा था।

दोपहर तक उन्हें एक बहुत डरावनी चीज़ दिखाई दी: एक बकरी की लाश पेड़ से लटकी हुई थी। उसमें से ताज़ा खून टपक रहा था, जैसे किसी ने उसे जानबूझकर वहाँ लटकाया हो। बकरी की आँखें खुली थीं और उनमें बहुत डर दिख रहा था।

एक दोस्त जिसका नाम इमरान था, उसने कहा कि उन्हें वापस चलना चाहिए, लेकिन कबीर नाम का एक और दोस्त, जिसके मन में बहुत दुख था (क्योंकि उसके दोस्त रोहन की मौत हो गई थी), वह किसी भी हाल में आगे बढ़ना चाहता था। उसे लगा कि शायद यह सफर उसके दुख को कम कर देगा।

शाम होने लगी और आसमान में काले बादल छा गए। अचानक बहुत तेज़ बारिश होने लगी। वे दौड़कर एक पुरानी और टूटी हुई झोपड़ी में घुस गए ताकि बारिश से बच सकें।

झोपड़ी के अंदर की दीवारों पर किसी अजीब भाषा में कुछ मंत्र लिखे थे। छत से एक बहुत डरावनी मूर्ति लटक रही थी। यह मूर्ति लकड़ी और हड्डियों से बनी एक आदमी जैसी थी, लेकिन उसके सिर की जगह खाली थी और उसके हाथ ऊपर आसमान की तरफ उठे हुए थे, जैसे वह कुछ माँग रहा हो।

मूर्ति के नीचे एक छोटी सी जगह थी जहाँ कुछ सूखे फूल और जानवरों की हड्डियाँ पड़ी थीं। झोपड़ी के अंदर एक अजीब सी बदबू आ रही थी, जैसे कोई चीज़ सड़ गई हो। विक्रम ने एक मोमबत्ती जलाई, लेकिन उसकी जलती हुई लौ में वह झोपड़ी और भी ज़्यादा डरावनी लग रही थी।

उस रात, उन सभी दोस्तों को बहुत गंदे और डरावने सपने आए। कबीर को तो अपने दोस्त रोहन की मौत का वही भयानक सपना फिर से दिखा।

“नहीं… रोहन…!”

वह डर के मारे चीखता हुआ नींद से उठा।

दूसरा दिन: जब उसकी आँखें खुलीं, तो उसने देखा कि वह झोपड़ी के बाहर कीचड़ में लेटा हुआ है। उसके सीने पर, जहाँ दिल होता है, वहाँ पंजे जैसे गहरे निशान थे, जैसे किसी बहुत बड़े जानवर ने उसे नोंच दिया हो।

“यह क्या है?”

कबीर ने अपने निशानों को देखा, उनसे खून निकल रहा था। पर आसपास तो कोई जानवर भी नहीं था! अर्जुन और विक्रम की हालत भी ठीक नहीं थी। उनके शरीर पर भी कई खरोंच और चोटें थीं, जैसे किसी ने उन्हें मारा हो। अर्जुन दर्द से कराहते हुए बोला, “आह! यह सब क्या हो रहा है?”

विक्रम ने भी कहा, “मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा, मेरा शरीर दुख रहा है!”

लेकिन इमरान का हाल तो सबसे अजीब था। वह झोपड़ी के अंदर, उस डरावनी मूर्ति के सामने, बिना कपड़ों के झुका बैठा था। उसकी आँखें एकदम खाली थीं, उनमें कोई भावना नहीं थी। ऐसा लग रहा था मानो वह कोई और इंसान हो, जैसे किसी ने उसे अपने बस में कर लिया हो।

उसका पूरा शरीर काँप रहा था और वह अजीब-अजीब बातें बड़बड़ा रहा था, “भूत-कालिन… भूत-कालिन…” यह सब देखकर कबीर, अर्जुन और विक्रम बहुत डर गए। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उनके साथ यह सब क्या हो रहा है। दूसरे दिन ऐसे ही बीत गया।

तीसरा दिन: सुबह हुई, लेकिन दोस्तों को लगा जैसे जंगल उन्हें छोड़ ही नहीं रहा था। “यह क्या हो रहा है?” कबीर ने हैरानी से कहा। उन्होंने बहुत कोशिश की कि वे जंगल से बाहर निकल जाएँ, कई रास्तों पर चले, लेकिन हर बार घूम-फिरकर वे उसी पेड़ पर वापस आ जाते जहाँ वह बकरी की लटकी हुई लाश थी।

यह बहुत अजीब था, मानो जंगल उन्हें जाने ही नहीं देना चाहता हो!

अब उन्हें जंगल में कुछ अजीब-अजीब आवाज़ें भी सुनाई देने लगी थीं। कभी ऐसा लगता जैसे सूखे पत्तों पर कोई धीरे-धीरे चल रहा हो, फुसफुसाते हुए और कभी-कभी तो अँधेरे में चमकती हुई आँखें भी दिखाई देती थीं, जैसे कोई हर पेड़ के पीछे से उन्हें झाँक रहा हो। “देखो! वह क्या है?” अर्जुन ने डरकर कहा।

विक्रम बहुत घबरा गया। उसने सोचा, “चलो, मैं पेड़ पर चढ़कर देखता हूँ, शायद ऊपर से कोई गाँव या रास्ता दिख जाए।” वह तेज़ी से एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ने लगा। लेकिन जैसे ही वह थोड़ा ऊपर पहुँचा, उसके मुँह से एक भयानक चीख निकली! “आऽऽह! बचाओ!”

नीचे खड़े कबीर, अर्जुन और इमरान ने देखा कि विक्रम के पैरों से खून टपक रहा था और उसकी आँखें डर से बहुत बड़ी हो गई थीं। वह बिना सोचे समझे पेड़ से कूद गया। उसके चेहरे पर ऐसा डर था, जिसे देखकर लग रहा था कि उसने ऊपर कोई बहुत ही डरावनी चीज़ देखी है, जिसे वे नीचे से देख नहीं पा रहे थे।

रात होते ही उनका डर और भी बढ़ गया। उन्होंने थोड़ी-सी आग जलाई और पास बैठ गए, पर मन में शांति नहीं थी। तभी विक्रम अचानक गायब हो गया! “विक्रम! विक्रम, तुम कहाँ हो?” कबीर ने आवाज़ लगाई।

उन्होंने उसे हर तरफ ढूँढा, लेकिन वह कहीं नहीं मिला। बस, उसकी काँपती हुई आवाज़ जंगल की गहराइयों से आ रही थी, “बचाओ… मुझे बचाओ!” वह आवाज़ धीरे-धीरे शांत हो गई।

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चौथा दिन: अगले दिन सुबह, उन्हें विक्रम की लाश एक बहुत ऊँचे पेड़ पर लटकी हुई मिली। उसका शरीर ऐसे बुरी तरह फटा हुआ था, जैसे किसी बहुत बड़े और भयानक जानवर ने उसे फाड़ दिया हो। यह देखकर सब समझ गए कि कोई बुरी ताक़त उन्हें मार रही है। इमरान तो इस सदमे को सह नहीं पाया और वहीं ज़मीन पर बैठकर रोने लगा। उसकी आँखों से आँसू रुक नहीं रहे थे।

कबीर का दिमाग तो जैसे पागल हो रहा था। उसे जंगल की जगह, मुंबई की दुकान की वही गलियाँ दिखने लगीं, जहाँ उसके दोस्त रोहन की मौत हुई थी।

“रोहन…!” उसे हर तरफ रोहन की चीखें सुनाई देती थीं, जैसे हवा में गूँज रही हों।

रात में, जब वे जो थोड़ा-बहुत खाना बचा था, उसे खाने की कोशिश कर रहे थे, तभी अचानक इमरान को किसी ने ज़ोर से खींच लिया! “आऽऽह!” उसकी चीखें पूरे जंगल में गूँज गईं, पहले बहुत तेज़, फिर धीरे-धीरे धीमी होती गईं। कुछ देर बाद, इमरान की लाश भी एक पेड़ पर लटकी मिली।

उसका शरीर ऐसा लग रहा था जैसे उसकी सारी हड्डियाँ तोड़ दी गई हों और उसे मोड़-तोड़कर लटका दिया गया हो।

पांचवा दिन: अब जंगल में सिर्फ़ कबीर और अर्जुन ही बचे थे। वे बहुत डरे हुए थे और भागते रहे, कभी पत्थरों से ठोकर खाते, कभी पेड़ों की जड़ों में उलझते। “हमें यहाँ से निकलना होगा!” कबीर हाँफते हुए बोला। तभी उन्हें दूर एक गाँव की हल्की-सी झलक दिखी – आसमान में कुछ धुएँ के गुच्छे उठ रहे थे।

“देखो अर्जुन, वो गाँव है!” कबीर की आवाज़ में उम्मीद थी। उन्हें लगा वो बच जाएँगे!

उनकी उम्मीद जगी, लेकिन जैसे ही वे गाँव के पास पहुँचे, अचानक एक बहुत तेज़ और ठंडी हवा चली। उन्हें कुछ समझ आता, इससे पहले ही वे दोनों बेहोश होकर ज़मीन पर गिर पड़े।

जब उन्हें होश आया, तो उन्होंने देखा कि वे एक अँधेरे गोदाम में बंधे हुए हैं। उनके आसपास कुछ अजीब लोग खड़े थे। उनके चेहरों पर सफेद रंग की राख लगी थी और उनकी आँखों में कोई भावना नहीं थी, वे एकदम खाली दिख रही थीं। उन लोगों के शरीर पर अजीब-अजीब निशान बने हुए थे, जिन्हें देखकर डर लग रहा था।

उनमें से एक आदमी, जिसकी आवाज़ बहुत गहरी और डरावनी थी, उसने उन्हें बताया, “हम एक बहुत पुराने और भयानक देवता ‘भूत-कालिन’ की पूजा करते हैं। ये देवता ‘काल भैरव’ और ‘माया देवी’ के बच्चे हैं।”

उसने आगे बताया, “यह देवता सिर्फ़ उन्हीं लोगों को ज़िंदा रखते हैं जो अंदर से दुखी और टूटे हुए होते हैं। बाकी सभी को वे अपनी बलि चढ़ा देते हैं!”

कबीर के सीने पर जो निशान थे (जो उसे झोपड़ी में मिले थे), उन्हें देखकर उन लोगों ने कहा, “यह लड़का तो चुना गया है! इसे हमारे देवता का सेवक बनना होगा!” लेकिन अर्जुन को बलि चढ़ाने के लिए ले जाया गया।

गोदाम के अंदर एक बहुत बड़ी वेदी (पूजा करने की जगह) बनी हुई थी, जहाँ सूखे खून के धब्बे और जानवरों की अजीब-अजीब हड्डियाँ पड़ी थीं। उन तांत्रिकों ने अर्जुन को उस वेदी पर लिटाया और जोर-जोर से कुछ मंत्र पढ़ने लगे।

अचानक, पूरे गोदाम में एक काले रंग का धुआँ फैल गया, और उस धुएँ में से भूत-कालिन बाहर आया। वह इतना बड़ा था कि उसकी ऊँचाई पेड़ों से भी ज़्यादा थी। उसके सीने में एक आदमी का चेहरा था, जो बहुत दुखी और दर्द से भरा दिख रहा था।

उसके हाथ इतने लंबे थे कि वह पेड़ों तक पहुँच सकते थे। उसकी आँखें लाल-लाल अंगारों की तरह चमक रही थीं। भूत-कालिन ने अर्जुन को एक प्यारा सपना दिखाया। अर्जुन ने देखा कि उसकी पत्नी मुस्कुराते हुए उसके पास आ रही है, उसे गले लगाने के लिए।

अर्जुन बहुत खुश हुआ और उसने आँखें बंद कर लीं। लेकिन जैसे ही उसकी पत्नी उसे गले लगाने लगी, उसका चेहरा एक भयानक राक्षस में बदल गया! और उस राक्षस ने अर्जुन को अपनी लंबी-लंबी उंगलियों में जकड़ लिया और उसे खींचकर पेड़ पर टांगकर मार डाला!

“आऽऽह! नहीं!” अर्जुन की चीख पूरे गोदाम में गूँज उठी। लेकिन उन तांत्रिकों के चेहरों पर कोई दुख नहीं था।

वह रात थी। कबीर का मन रोहन की मौत और अभी-अभी अर्जुन की भयानक बलि को देखकर बहुत जल रहा था। उसने किसी तरह खुद को आज़ाद किया। उसे पास में एक जलती हुई मशाल दिखी। उसने तुरंत वह मशाल उठाई और उस मंदिर में आग लगा दी! “मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा!” कबीर गुस्से में बोला।

लकड़ी और सूखे पत्तों से बना वह मंदिर बहुत तेज़ी से जलने लगा। भूत-कालिन गुस्से से चिल्लाया और कबीर का पीछा करने लगा। जंगल हिलने लगा, पेड़ ज़ोर-ज़ोर से झुकने लगे, और हवाएँ भयानक आवाज़ें करने लगीं, जैसे वे भी चिल्ला रही हों। कबीर को फिर से रोहन दिखाई दिया – इस बार वह मुस्कुरा रहा था, जैसे कह रहा हो, “हार मान लो, कबीर।”

लेकिन अब कबीर तैयार था। उसके अंदर का डर अब बदल गया था, वह गुस्से और हिम्मत से भर गया था। उसने पास पड़ी एक पुरानी कुल्हाड़ी उठाई और अपनी पूरी ताक़त से राक्षस के सीने पर वार किया!

“यह लो!” राक्षस एक भयानक चीख के साथ पीछे हटा, उसके सीने से काला धुआँ निकलने लगा।

कबीर भागता रहा, बिना रुके, बिना पीछे मुड़े। वह तब तक भागा जब तक कि वह जंगल की सीमा (किनारा) पर नहीं पहुँच गया। वहाँ धूप फैली हुई थी और हवा ताज़ी थी। जैसे ही वह जंगल से बाहर निकला, राक्षस रुक गया। वह अपने जंगल से बाहर नहीं जा सकता था, मानो कोई अदृश्य दीवार उसे रोक रही हो।

वह ज़ोर-ज़ोर से चीखा, उसकी आवाज़ जंगल में गूँजती रही, लेकिन कबीर अब आज़ाद था!

वह बहुत थका हुआ, शरीर पर खून के निशान लिए, लेकिन ज़िंदा खड़ा था। उसने एक भयानक देवता का सामना किया था और अपने डर को हरा दिया था! यह उसकी सबसे बड़ी जीत थी।

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