अर्जुन मेहरा एक सच्ची घटनाओं पर किताब लिखने वाले लेखक थे। उनका परिवार—पत्नी प्रिया, बेटी अन्या और बेटा कबीर—पुणे के बाहर एक नए और शांत इलाके में रहने आया।
अर्जुन ने यह घर इसलिए चुना था क्योंकि यहाँ पहले एक परिवार के साथ बहुत भयानक घटना हुई थी। पिछली फैमिली को घर के पीछे बरगद के पेड़ से लटका दिया गया था और उनकी छोटी बेटी श्रेया गायब हो गई थी। अर्जुन चाहता था कि वह इस रहस्य को सुलझाकर फिर से मशहूर हो जाए।
जैसे ही वो सब घर में घुसे, घर में घुसते ही सबको कुछ अजीब सा महसूस हुआ। दीवारों पर पुरानी दरारें थीं और खिड़कियों से धूल उड़ रही थी और हर कोने में सन्नाटा था।
पहले ही दिन, जब सामान रखा जा रहा था, प्रिया ने अर्जुन से कहा, “अर्जुन ये घर थोड़ा डरावना नहीं लग रहा?” अर्जुन ने मुस्कराकर कहा, “नहीं, सब ठीक है।”
शाम को कबीर ने बताया कि उसे अपने कमरे में किसी के चलने की आवाजें आईं। अन्या ने भी कहा कि उसे लगा जैसे कोई उसके पीछे-पीछे चल रहा है। प्रिया ने सोचा बच्चे नए घर में घबरा रहे हैं, लेकिन अर्जुन को भी रात में सीढ़ियों पर किसी के चलने की आवाजें सुनाई दीं।
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अगले कुछ दिन ऐसे ही निकले, जैसे कभी-कभी दरवाजे अपने आप खुल जाते, तो कभी खिड़कियाँ खुद-ब-खुद बंद हो जातीं। रसोई में बर्तन अपने आप गिर जाते और कभी-कभी बिजली अपने आप चली जाती।
एक दिन, अर्जुन को अटारी में एक पुराना डिब्बा मिला, जिस पर लिखा था “होम मूवीज”। उसमें चार फिल्म की रीलें और एक प्रोजेक्टर था। रीलों के नाम थे: “परिवार की आखिरी शाम”, “तालाब की रहस्यमयी रात”, “जलती कार की चीख”, “नींद में साया”। अर्जुन ने रात को सबके सो जाने के बाद पहली रील चलाई।
अर्जुन ने पहली रील चलाई, “परिवार की आखिरी शाम”—फिल्म में एक परिवार बरगद के पेड़ के नीचे खड़ा था, उनके सिर पर कपड़ा था और गले में फंदा। अचानक एक डाली काटी गई और पूरा परिवार हवा में लटक गया। अर्जुन डर के मारे काँप गए।
अर्जुन ने अगली रील “तालाब की रहस्यमयी रात”—परिवार तालाब के पास खेल रहा था। अचानक सबको कुर्सियों से बांधकर पानी में डाल दिया गया। सब तैरने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन डूब गए।
तीसरी रील देखी “जलती कार की चीख”—उसमें एक परिवार बगीचे में मस्ती कर रहा था। फिर रात का सीन आया, परिवार को कार में बांध दिया गया था, पास में पेट्रोल के डिब्बे थे। किसी ने माचिस जलाई और कार में आग लगा दी। कैमरा जलती कार पर रुका रहा, लेकिन आवाज नहीं थी।
चौथी रील “नींद में साया” सबसे डरावनी थी। परिवार अपने बिस्तर पर सो रहा था। कैमरा धीरे-धीरे हर कमरे में गया। अचानक एक परछाईं आई और उसने सबकी गर्दन काट दी। चादरें खून से भर गईं। अर्जुन के हाथ कांपने लगे। उन्होंने नोटिस किया की, “हर बार एक बच्चा गायब रहता है।”
इसके बाद घर में और भी अजीब घटनाएँ होने लगीं। रात को दीवारों पर परछाइयाँ चलतीं, कभी किसी के हँसने या फुसफुसाने की आवाज आती।
एक रात कबीर अचानक चीखते हुए उठा, “मुझे मत पकड़ो! मुझे मत पकड़ो!” और वह अपने कमरे के कोने में छुप गया। प्रिया और अर्जुन उसे गले लगाकर चुप कराने लगे। अन्या ने अचानक अपने कमरे की दीवार पर डरावनी पेंटिंग्स बनानी शुरू कर दीं—बरगद का पेड़, मरा हुआ परिवार और वही अजीब आदमी।
जब प्रिया ने पूछा, “ये कौन है?” अन्या बोली, “ये मिस्टर बूगी है। मेरा दोस्त। ये तस्वीरों में रहता है।” तब ही अर्जुन को ऊपर से कदमों की आवाजें आने लगीं। वो तोड़ कर ऊपर गया और देखा तो कोई नहीं था।
अगले दिन वे टॉर्च लेकर अटारी में गए। वहां दीवारों पर बच्चों के नाम के साथ मर्डर की ड्रॉइंग्स थीं। अचानक प्रोजेक्टर अपने आप चलने लगा और दीवार पर फिल्में चलने लगीं। कुछ भूतिया बच्चे वहां खड़े थे, एक बोला, “श्श्श… सुन लेगा।” अर्जुन डर के मारे नीचे गिर पड़े।
अब अर्जुन को समझ आया कि ये सब फिल्में और घर की घटनाएँ आपस में जुड़ी हैं। उन्होंने पुलिसवाले शर्मा जी से बात की। पता चला, हर मर्डर उसी घर में हुआ था, जहां पिछली फैमिली मरी थी, और हर बार वो डिब्बा नए घर में पहुंच जाता था।
अर्जुन ने प्रोफेसर जोशी से भी बात की, जो भूत-प्रेत के जानकार थे। जोशी ने बताया, “ये बगूल नाम का राक्षस है, जो बच्चों की आत्मा खा जाता है। वो तस्वीरों के जरिए अपनी दुनिया में बुला लेता है। एक बार देख लिया, तो वो तुम्हारे पास आ सकता है।”
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सुबह का समय था। सूरज की हल्की रोशनी घर में आ रही थी, लेकिन घर में सबको अजीब सा डर लग रहा था। प्रिया रसोई में नाश्ता बना रही थी। अर्जुन अपने कमरे में लैपटॉप पर काम कर रहे थे। तभी अर्जुन ने देखा कि कमरे के शीशे में अचानक एक सफेद चेहरा दिखा, जिसकी आंखें बहुत काली थीं।
अर्जुन ने जल्दी से पीछे देखा, लेकिन वहां कोई नहीं था। अर्जुन को थोड़ा डर लगा, पर उन्होंने सोचा शायद यह उनका वहम है।
थोड़ी देर बाद, अन्या अपने कमरे में बैठी थी। वह हमेशा रंग-बिरंगी पेंटिंग बनाती थी, लेकिन आज वह सिर्फ काले और लाल रंग से एक डरावना पेड़ और एक अजीब सा चेहरा बना रही थी। प्रिया ने देखा तो पूछा, “अन्या, ये क्या बना रही हो?” अन्या ने कुछ नहीं कहा, बस चुपचाप पेंटिंग करती रही। उसकी आंखों में डर था।
दोपहर में कबीर अपने खिलौनों से खेल रहा था। अचानक उसे लगा जैसे कोई उसके पीछे खड़ा है। उसने डरते-डरते पीछे देखा, तो उसे कमरे के कोने में एक परछाईं सी दिखी। कबीर डर के मारे चिल्ला पड़ा, “मम्मा!” प्रिया दौड़कर आई, लेकिन वहां कोई नहीं था। कबीर बहुत डर गया था और प्रिया से लिपट गया।
शाम को अर्जुन अपने लैपटॉप पर लिख रहे थे। अचानक उनकी स्क्रीन पर झिलमिलाहट हुई और कुछ सेकंड के लिए वही सफेद चेहरा दिखा। अर्जुन घबरा गए और लैपटॉप बंद कर दिया। उन्हें लगा जैसे कोई उनके पीछे खड़ा है, लेकिन जब उन्होंने देखा तो वहां कोई नहीं था।
शाम होते-होते घर और भी डरावना लगने लगा। गलियारे में अर्जुन को बच्चों की धीमी-धीमी आवाजें सुनाई दीं। जब उन्होंने ध्यान से देखा, तो उन्हें कुछ छोटे-छोटे बच्चे गलियारे के कोने में खड़े दिखे। उनके चेहरे बहुत फीके थे और आंखें बिलकुल खाली थीं। अर्जुन डर के मारे अपनी आंखें बंद कर लीं, और जब दोबारा देखा तो बच्चे गायब थे।
रात को सबने खाना खाया और अपने-अपने कमरों में चले गए। कबीर को नींद नहीं आ रही थी। वह बार-बार डर के मारे उठ जाता और कहता, “मम्मा, मुझे डर लग रहा है।” प्रिया उसे गले लगाकर सुलाने की कोशिश करती रही।
इसी बीच, अर्जुन के स्टडी रूम में रखा प्रोजेक्टर अपने आप चलने लगा। उसमें वही पुरानी डरावनी फिल्में चलने लगीं। कमरे में ठंडी हवा चलने लगी। अर्जुन ने प्रोजेक्टर बंद करने की कोशिश की, लेकिन वह अपने आप चलता रहा।
दीवार पर अचानक बगूल का डरावना चेहरा दिखने लगा और कमरे में हल्की-सी फुसफुसाहट सुनाई दी—“श्श्श… सुन लेगा।”
रात के समय अन्या अपने कमरे के कोने में बैठ गई थी। वह बहुत चुप थी और उसकी आंखों में आंसू थे। कबीर भी डर के मारे बार-बार उठता रहा। अर्जुन और प्रिया दोनों बहुत परेशान थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि घर में क्या हो रहा है, लेकिन सबको बहुत डर लग रहा था।
पूरा दिन और रात घर में अजीब-अजीब बातें होती रहीं। सबको लग रहा था कि घर में कोई छुपा हुआ है, जो उन्हें देख रहा है।
डर के मारे अर्जुन ने सारी फिल्में और प्रोजेक्टर जला दिए और प्रिया से कहा, “हमें अभी जाना है।” वे सब मुंबई के पुराने फ्लैट में लौट आए। लेकिन उसी रात, अर्जुन को अटारी में फिर से एक डिब्बा मिला—“होम मूवीज – एक्सटेंडेड कट एंडिंग्स”।
उन्होंने कांपते हाथों से नई रील देखी। उसमें दिखा कि गायब हुए बच्चे ही अपने परिवार को मार रहे हैं और फिर बगूल के साथ फिल्म में चले जाते हैं। अर्जुन डर के बोले, “हे भगवान… ये तो बच्चे थे…”
अचानक अर्जुन को चक्कर आया, उन्हें समझ आया कि उनकी चाय में कुछ मिला था। अब अन्या, जो बगूल के वश में थी, कुल्हाड़ी लेकर आई। उसने कैमरा लगाया और बोली, “चिंता मत करो, पापा। मैं आपको फिर से मशहूर बना दूंगी।”
उसने अपने परिवार को मार दिया, फिल्म बनाई और दीवार पर खून से पेंटिंग बना दी—अपने परिवार की, बगूल की और अपनी। फिल्म खत्म होते ही बगूल आया, अन्या को उठाया और अपनी दुनिया में ले गया। डिब्बा फिर से अटारी में रह गया, अगली फैमिली के लिए।
खाली घर में पुलिसवाले शर्मा जी की आवाज आई, “मेहरा जी, मुझे लगता है अब समझ आ गया है। पैटर्न ये नहीं कि कत्ल कहां हुए, असली पैटर्न है कि अगला घर कौन सा था…”
एक बार उसे देख लिया, तो कोई नहीं बचा सकता।
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