प्यार, धोखा और एक खौफनाक आत्मा!

राख की डोर: देवन जोग और ज्योति शर्मा, दोनों की ज़िंदगी रात में शुरू होती थी। हर शाम, वे गुरुग्राम के एक बड़े कॉल सेंटर में पहुँचते, जहाँ उनकी असली पहचान सिर्फ हेडसेट और कंप्यूटर स्क्रीन तक सीमित थी।

वे दिन-भर अजनबियों के लिए हवाई जहाज के टिकट बुक करते, लेकिन खुद कभी कहीं नहीं जाते थे।

उनकी दोस्ती धीरे-धीरे गहरी होने लगी —

रात के तीन बजे कैंटीन में चुपचाप मैगी खाना, कंप्यूटर स्क्रीन के पार से एक-दूसरे को देख कर मुस्कुराना, और कभी-कभी ऑफिस की छत पर चुपचाप बैठकर सपनों की बातें करना।

एक दिन, बारिश की रात थी। ऑफिस के बाहर बिजली कड़क रही थी, और अंदर दोनों की धड़कनें।

देवन ने ज्योति से कहा, “अगर कभी उड़ान मिली, तो क्या मेरे साथ चलोगी?”

ज्योति ने मुस्कुरा कर सिर हिला दिया।

उनका प्यार किसी फिल्मी कहानी जैसा नहीं था —

ना बड़े-बड़े वादे, ना महंगे गिफ्ट।

बस छोटी-छोटी खुशियाँ, जैसे एक-दूसरे के लिए चाय लाना, या थके होने पर कंधा देना।

उनकी शादी भी अलग थी। ना बैंड-बाजा, ना रिश्तेदार, ना ही कोई लंबा फेरे वाला मंडप।

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एक सुबह, दोनों ने ऑफिस से छुट्टी ली, सीधे कोर्ट पहुँचे,

और वकील के सामने एक-दूसरे का हाथ पकड़कर बोले —

“हम साथ रहना चाहते हैं, हमेशा के लिए।”

गवाह सिर्फ दो थे —

एक सरकारी बाबू, और देवन का वफादार कुत्ता अस्थु, जो अपनी धुएँ जैसी आँखों से सब देख रहा था। शादी के बाद, दोनों ने एक-दूसरे को एक कागज़ का दिल दिया,

जिस पर लिखा था — “हमारी डोर अब कभी नहीं टूटेगी।”

शादी के बाद, देवन के पापा ने ज्योति को अपनाने से मना कर दिया। इसलिए दोनों ने अस्थु के साथ सेक्टर 56, टावर-E, फ्लैट D-906 में नया घर ले लिया।

शुरुआत में सब अच्छा था —

IKEA के फर्नीचर, स्विग्गी का खाना, और छोटी-छोटी खुशियाँ।

दो हफ्ते बाद, रात 2:11 बजे देवन के फोन पर व्हाट्सएप मैसेज आया—

दिव्या: “नव्या ने सुसाइड कर लिया जब उसे तुम्हारी शादी का पता चला।

        फांसी लगा ली। कॉल करना।”

फोन बर्फ जैसा ठंडा हो गया, देवन की उंगलियाँ जाम हो गईं। उसने चैट डिलीट कर दी, ज्योति को कुछ नहीं बताया।

दो घंटे बाद, देवन ने ज्योति को बताया कि वह उसके साथ नहीं जाएगा क्योंकि उसे ओवरटाइम के लिए काम पर रुकना था और उसने ज्योति को घर जाने को कहा। ज्योति ने हाँ कहा और अपनी शिफ्ट के बाद सुबह घर चली गई।

ज्योति नहाकर टीवी देखने चली गई और देवन का इंतज़ार करने लगी। कुछ समय के बाद अचानक, घर की लाइट्स टिमटिमाने लगीं, जैसे कोई डरावना डिस्को चल रहा हो और सब कुछ बंद हो गया। 

फिर, टीवी अपने आप ऑन हो गया, और स्क्रीन पर अजीब अक्षर दिखने लगे —

N-A-V-Y-A

ज्योति डर गई। उसने टीवी बंद कर दिया, लेकिन डर कम नहीं हुआ। बाथरूम से फिर रोने की आवाज़ आई।

इस बार, आवाज़ बहुत करीब थी, जैसे कोई उसके कान में फुसफुसा रहा हो।

“देवन मेरा है…”

ज्योति ने हिम्मत करके बाथरूम का दरवाजा खोला। अंदर कोई नहीं था, लेकिन शीशे पर भाप से लिखा था —

“YOU LEFT ME”

ज्योति चीख पड़ी। अस्थु दौड़कर आया, और दरवाजे के पास गुर्राने लगा।

ज्योति को लगा, कोई परछाईं उसके पीछे खड़ी है,

साँस ले रही है, उसे छू रही है।

उसने फोन निकाला और देवन को कॉल किया, लेकिन फोन नहीं लग रहा था।

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देवन घर आया, तो ज्योति उससे लिपट गई, काँप रही थी। उसने देवन को सब कुछ बताया — मैसेज, लाइट्स, टीवी, बाथरूम…

देवन ने कहा, “ये सब तुम्हारा वहम है। तुम बहुत थक गई हो। चलो, सो जाओ।” और खुद सो गया, ज्योति को और अस्थु को डर के साथ छोड़कर।

अगले दिन, ज्योति को बुखार आ गया। देवन ने उसे कंबल ओढ़ाया और फिर काम पर चला गया। 2 बजे घर की सारी लाइट्स रनवे की लाइट्स की तरह टिमटिमाने लगीं।

रसोई की दराजें खुद-ब-खुद खुल गईं, स्टील की प्लेटें सिर के चारों ओर घूमने लगीं और ज़मीन पर गिर गईं।

सीलिंग फैन उल्टा घूमने लगा, उसके ब्लेड टूटकर गिरने लगे। अस्थु एक फुट हवा में उठ गया, पंजे हवा में मारता रहा, फिर सोफे पर गिरा। उसके सफेद बालों पर खून के छींटे थे। बेडरूम का दरवाजा जोर से बंद हुआ।

अंदर ज्योति खड़ी थी, लेकिन उसकी आँखें पूरी तरह काली थीं, और साड़ी की प्लीट्स गीली लटक रही थीं।

आवाज़—दो सुरों में, एक ज्योति की, दूसरी किसी और की:

“विंडो सीट, देवन… याद है? तुमने कहा था, मेरी विंडो सीट हमेशा पक्की।”

उस शरीर ने दीवार पर लाल नाखूनों से दिल बना दिया—जो ज्योति के नहीं थे।

देवन घर आया, कमरे की हालत देखी, और सोचा ज्योति नाटक कर रही है। वो चिल्लाया और चला गया। आधी रात के बाद वही आवाज़ फिर आई, बहुत प्यार से:

“क्या तुम अब भी मेरे बोर्डिंग पास संभाल कर रखते हो? वो गोवा वाला, जब हमने पहली बार साथ में टर्ब्युलेंस को चूमा था?”

इसी बात पर देवन को सब याद आ गया—नव्या, उसकी एक्स-कलीग, जुनूनी, उसकी हर हरकत ट्रैक करती थी, हफ्ते में 200 मिस्ड कॉल्स।

देवन ने उसे बुरी तरह इग्नोर किया था… और ज्योति को प्रपोज करने के दिन ही सब नंबर ब्लॉक कर दिए थे।

काली आँखों वाली ज्योति बिस्तर पर आकर बैठ गई, आँसू और मुस्कान साथ-साथ। 

नव्या की आवाज़: “मैंने हर वो वादा निभाया, जो तुमने तोड़ा। यहाँ तक कि हमेशा का भी।”

देवन टूट गया—“मैंने तुम्हारा भरोसा तोड़ा, नव्या। तुमने मुझे घुटन दी, मैं भाग गया। माफ़ कर दो… बहुत पछता रहा हूँ।”

ज्योति की आँखें साफ़ हो गईं, वो डर के मारे जाग गई, और बस देवन की सिसकी सुनी।

सुबह वे महाकाल गिरी नाम के अघोरी के पास गए, जो श्मशान की हवाओं को पढ़ता था। उसने उनके हाथों में खून से सने लाल कलावे बाँध दिए।

“इन्हें हाथ में बाँध लो। जब तक सब खत्म न हो, खोलना मत। वरना आत्मा उसी पल पास वाले को ले जाएगी।”

नव्या की अस्थियाँ लोधी रोड श्मशान के कोलंबेरियम में थीं—ब्लॉक F-013। वो गए बिना बारिश के गरजती बिजली। अघोरी ने रुद्राक्ष और हल्दी से घेरा बनाया, मंत्र पढ़ने लगा।

अचानक:

पुरानी चिताओं की राख बवंडर बनकर एक औरत की आकृति में बदल गई, जिसके बाल काले धुएँ जैसे थे। श्मशान की घंटियाँ और विमान के अलार्म एक साथ बजने लगे। दूर की चिताओं पर लाशें उठकर बैठ गईं, मुँह खोलकर वही मंत्र दोहराने लगीं।

दीयों की लौ बुझ गई।

अंधेरा।

सिर्फ देवन और ज्योति के हाथों के लाल धागे चमक रहे थे, जैसे बोर्डिंग पास स्कैन हो रहे हों।

नव्या की अस्थियों की जगह से बालों की मोटी रस्सी निकली, देवन को खींचने लगी।

अघोरी ने उल्कापिंड की छुरी से बाल काटे, मंत्र पढ़ता रहा। बालों से नव्या की चीखें आने लगीं। आग की लपटें अघोरी को घेरने लगीं, उसने देवन को घेरा से बाहर धकेल दिया।

बाल वापस अस्थियों में समा गए, ढक्कन ज़ोर से बंद हो गया। अस्थु की सिसकी और जली हुई चंदन की गंध रह गई। देवन और ज्योति के धागे जलकर भूरे हो गए।

दोनों ने अघोरी की राख यमुना में बहा दी। घर लौटे तो हवा हल्की थी, आईने साफ़, अस्थु चैन से सो गया।

देवन ने ज्योति को सब सच बताया। ज्योति ने माफ़ किया, लेकिन कभी भूली नहीं।

कहानी की सीख

राज़ अंधेरे में सड़ते हैं,

धोखा उन्हें डरावना बना देता है।

सच बोलो, वरना सच खुद दरवाज़ा खटखटाएगा—

और कभी-कभी वो दरवाज़ा नहीं,

कब्र खोलता है।

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